लोन की EMI नहीं भरने पर Supreme Court का बड़ा फैसला, जानें क्या होगा आपके साथ

आजकल लोन लेना सामान्य हो गया है, लेकिन लोन की EMI न भरने पर अब सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। एक मामले में, जब एक व्यक्ति ने अपनी कार की EMI नहीं भरी, तो फाइनेंस कंपनी ने उसकी कार उठा ली। कंज्यूमर कोर्ट ने इस मामले में…

Photo of author

Reported by Atul Kumar

Published on

आजकल लोन लेना एक आम बात हो गई है। महंगाई के इस दौर में घर बनाने से लेकर बड़ा सामान खरीदने तक, लोन की आवश्यकता हर जगह होती है। जब कोई व्यक्ति लोन लेता है, तो उसे हर महीने EMI भरनी होती है। यदि EMI जमा नहीं की जाती है, तो जुर्माना भरना पड़ सकता है। हाल ही में, ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें एक व्यक्ति ने फाइनेंस पर लोन लेकर कार खरीदी, लेकिन कुछ समय बाद उसने किस्तें जमा करना बंद कर दिया। इस मामले में अब कोर्ट में शिकायत दर्ज की गई है।

क्या कहता है मामला?

अम्बेडकर नगर के रहने वाले राजेश कुमार ने वर्ष 2013 में महिंद्रा कार फाइनेंस से लोन लेकर एक कार खरीदी थी। उन्होंने 1 लाख रुपये का डाउनपेमेंट किया और बाकी 6 लाख रुपये का लोन लिया था। इस लोन को चुकाने के लिए उन्हें हर महीने 12,531 रुपये की किस्त जमा करनी होती थी।

राजेश ने करीब 7 महीने तक कार की EMI जमा की। उसके बाद उन्होंने किस्तें जमा करना बंद कर दिया। फाइनेंस कंपनी ने उन्हें कई बार नोटिस भेजा, लेकिन उन्होंने नोटिस का जवाब नहीं दिया।

व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp

आखिरकार, फाइनेंस कंपनी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने राजेश कुमार को गिरफ्तार कर लिया है।

कंज्यूमर कोर्ट हुई सुनवाई

जब फाइनेंसर ने बिना नोटिस के उठा ली गाड़ी, तो ग्राहक ने कंज्यूमर कोर्ट में लगाया जुर्माना। एक व्यक्ति ने जब अपनी गाड़ी की किस्तें जमा नहीं कीं, तो फाइनेंसर कंपनी ने बिना किसी नोटिस के उसकी गाड़ी उठा ली। ग्राहक ने इस घटना को लेकर कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई।

कंज्यूमर कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि:

  • बिना नोटिस के ग्राहक की गाड़ी उठाना एक अपराध है।
  • फाइनेंसर द्वारा ग्राहक को किस्तें जमा करने का अवसर सही से नहीं दिया गया।

इसके बाद, कोर्ट ने फाइनेंसर कंपनी पर 2 लाख 23 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

लोन डिफॉल्टर्स को मिलेगा यह मौका

सुप्रीम कोर्ट ने लोन डिफॉल्टर्स को एक बड़ी राहत देते हुए कहा है कि उन्हें अब अपनी EMI नहीं भरने के लिए बैंकों या फाइनेंसरों से बातचीत करने और समझौता करने का मौका मिलेगा।

नए फैसले के अनुसार:

  • बैंकों और फाइनेंसरों को लोन डिफॉल्टर को पहले नोटिस देना होगा और उसे EMI भरने के लिए समय देना होगा।
  • अगर लोन डिफॉल्टर फिर भी EMI नहीं भर पाता है, तो बैंक या फाइनेंसर उसे कोर्ट में ले जा सकता है।
  • कोर्ट में लोन डिफॉल्टर को अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताना होगा, जिसके आधार पर कोर्ट फैसला सुनाएगा।

यह फैसला उन लोन डिफॉल्टर्स के लिए फायदेमंद होगा जो किसी कारणवश अपनी EMI नहीं भर पा रहे हैं। अब वे बैंकों या फाइनेंसरों से बातचीत करके एक समझौता कर सकते हैं और अपनी EMI कम करवा सकते हैं।

हालांकि, लोन डिफॉल्टर्स को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि EMI नहीं भरने पर उन्हें जुर्माना भरना पड़ सकता है। जुर्माने की राशि लोन की राशि के आधार पर तय की जाती है।

यह फैसला बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में मदद करेगा। यह लोन डिफॉल्टर्स और बैंकों दोनों के लिए हितकारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करना संबंधित कर्जदार को ब्लैकलिस्ट करने के समान माना जाता है। यह कर्जदार के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जैसे कि उसे नया लोन लेने या नौकरी पाने में कठिनाई हो सकती है।

इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक को लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले कर्जदार को सुनने का मौका देना चाहिए। बैंक को कर्जदार को यह बताना चाहिए कि वह लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने का इरादा क्यों रखता है। कर्जदार को अपना पक्ष रखने का मौका देने के बाद, बैंक को यह तय करना चाहिए कि क्या लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित किया जाना चाहिए।

यह फैसला कर्जदारों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। यह सुनिश्चित करेगा कि बैंक मनमाने तरीके से लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित नहीं कर सकते हैं। कर्जदारों को अब यह अधिकार होगा कि वे बैंक के आरोपों का विरोध कर सकें और अपना पक्ष रख सकें।

यह फैसला बैंकों के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है। बैंकों को अब लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले अधिक सावधानी बरतनी होगी। उन्हें कर्जदारों को सुनने और उनके पक्ष को समझने का मौका देना होगा। यह फैसला बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में मदद करेगा। यह कर्जदारों और बैंकों दोनों के लिए हितकारी है।

Leave a Comment