अगर बीवी आर्थिक रूप से सक्षम हो, क्या तब भी ‘तलाक’ के बाद देना होगा ‘मेंटेनेंस’?

उद्योगपति गौतम सिंघानिया और उनकी पत्नी नवाज मोदी सिंघानिया के तलाक की खबरें हाल ही में चर्चा में हैं। तलाक की शर्त में नवाज मोदी सिंघानिया ने पति की कुल संपत्ति का 70% हिस्सा मांगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों में महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने को बढ़ावा देते…

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Reported by Atul Kumar

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उद्योगपति और रेमंड कंपनी के चेयरमैन गौतम सिंघानिया और उनकी पत्नी नवाज मोदी सिंघानिया के तलाक की खबरें इन दिनों सुर्खियां बटोर रही हैं। 32 साल की शादी के बाद तलाक लेने का फैसला चौंकाने वाला है, लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली है तलाक की शर्त। नवाज मोदी सिंघानिया ने तलाक के बदले में गौतम सिंघानिया की कुल संपत्ति का 70% हिस्सा मांगा है, जो कि 8,700 करोड़ रुपये से भी अधिक है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें पति-पत्नी को आत्मनिर्भर बनने और भरण-पोषण के लिए न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाने पर ज़ोर दिया गया है।

यह फैसला उन महिलाओं के लिए सकारात्मक है जो तलाक के बाद आत्मनिर्भर बनने और अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए खुद काम करने की इच्छा रखती हैं।

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हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह फैसला केवल हाई-प्रोफाइल मामलों तक ही सीमित नहीं है। यह सभी लोगों पर लागू होता है, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।

महिला को नहीं दिया जाएगा मेंटनेंस

दिल्ली हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने तलाक के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

जस्टिस वी. कामेश्वर राव और अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने एक महिला के भरण-पोषण के दावे को खारिज करते हुए कहा कि महिला शिक्षित है और अपने दम पर काम करने में सक्षम है।

यह फैसला उन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है जो तलाक के बाद अपने पति से भरण-पोषण का दावा करती हैं। यह फैसला महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने और अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए खुद काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

इसके अलावा, यह फैसला उन पुरुषों के लिए भी राहत लेकर आया है जिनकी पत्नियां बेरोजगार हैं और उनसे भरण-पोषण का दावा कर रही हैं। यह फैसला समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने में मदद करेगा।

अपनी मर्जी से बेरोजगार है महिला 

हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला को गुजारा भत्ता पाने के दावे में खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला नौकरी करने में सक्षम है और अपनी मर्जी से बेरोजगार है। कोर्ट ने महिला को सलाह देते हुए कहा कि गुजारा भत्ता पाना और दूसरे पक्ष पर आर्थिक बोझ डालना कोई उचित कारण नहीं है।

फैमिली कोर्ट के फैसले को दिया पलट

यह मामला एक महिला का था जिसने तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता मांगा था।

फैमिली कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था और पति को एक निश्चित राशि का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है।

क्या है कहता भरण-पोषण का कानून?

भारत में, विभिन्न धर्मों के लोगों को अपनी रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह करने की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता के साथ, तलाक के प्रावधान भी धर्म और कानून के आधार पर भिन्न होते हैं।

हिंदुओं के लिए:

  • हिंदू विवाह अधिनियम विवाह और तलाक को नियंत्रित करता है।
  • इस अधिनियम के तहत, न केवल पत्नी, बल्कि पति भी तलाक के बाद भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांग सकता है।

विशेष विवाह अधिनियम के लिए:

  • यह अधिनियम उन विवाहों को नियंत्रित करता है जो धर्मनिरपेक्ष रीति-रिवाजों के अनुसार होते हैं।
  • इस अधिनियम के तहत, केवल पत्नी को ही तलाक के बाद भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है।

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