Karnataka HC Ruled: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि तलाक चाहने वाले पति द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि का आकलन करते समय प्रोविडेंट फंड कॉन्ट्रिब्यूशन, फेस्टिवल एडवांस, एलआईसी प्रीमियम, हाउस रेंट रिकवरी और लोन जैसी कटौतियों को शामिल नहीं किया जा सकता है. न्यायमूर्ति हंचेट संजीव कुमार ने एसबीआई कर्मचारी द्वारा दायर याचिका को “योग्यताहीन” बताते हुए खारिज कर दिया और कहा, ये कटौतियां केवल याचिकाकर्ता के फायदे के लिए हैं.
याचिकाकर्ता, जो एसबीआई में ब्रांच मैनेजर के रूप में काम करता है, ने अपनी पत्नी से तलाक मांगा था, जिसने मैसूर की एक फैमिली कोर्ट के सामने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए एक अलग याचिका दायर की थी. मैनेजर ने अंतरिम भरण-पोषण के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन भी दायर किया था.
इतना देना है गुजारा भत्ता
16 अगस्त, 2023 को अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को जीवन भर या उसके दोबारा शादी होने तक 15,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता दे और अपनी चार साल की बेटी को 10,000 रुपये महीना दे. इसके अलावा मुकदमे के खर्च के रूप में 10,000 रुपये का मुआवजा दिया गया.
इतनी है सैलरी
आदेश को चुनौती देते हुए, पति ने तर्क दिया कि उनकी ग्रोस सैलरी 1,01,628 रुपये महीना है, लेकिन कटौती के बाद टेक होम सैलरी 77,816 रुपये है. इस तरह, वह फैमिली कोर्ट के आदेश के मुताबिक पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देने में असमर्थ हैं. पत्नी ने कहा कि उसके पास इनकम का कोई सोर्स नहीं है.
न्यायमूर्ति संजीवकुमार ने कहा कि काटी गई राशि इनकम टैक्स और प्रोफेशनल टैक्स थीं, और याचिकाकर्ता केवल अपनी पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने के लिए इस राशि का हवाला दे रहा था.
आर्टिफिशियल कटौती बन जाएगी प्रवृत्ति
न्यायाधीश ने कहा, किसी भी मामले में, बताई गई कटौतियां अंततः याचिकाकर्ता के फायदे के लिए थीं, और इसलिए कम भरण-पोषण देने का आधार नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि पति की सैलरी की कैलकुलेट करते समय कटौती की गई राशि पर विचार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अगर इसकी अनुमति दी गई, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत दायर याचिका के हर प्रत्येक मामले में “अदालतों को गुमराह करने के इरादे से कम टेक-होम सैलरी दिखाने के लिए पति द्वारा आर्टिफिशियल कटौती करने की प्रवृत्ति होगी”.