क्या सरकार लोगो की निजी संपत्ति पर कब्जा कर सकती है? इस पर सुप्रीम कोर्ट में हुई बहस

Supreme Court on Private Property: भारत में विरासत की संपत्ति को लेकर राजनीतिक बहस जोरो पर है और इसी बीच इस मामले पर उच्चतम न्यायालय की तरफ से अहम टिप्पणी आई है। एक केस पर सुनवाई के समय अदालत का कहना है कि ऐसा कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति…

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Reported by Atul Kumar

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Supreme Court on Private Property: भारत में विरासत की संपत्ति को लेकर राजनीतिक बहस जोरो पर है और इसी बीच इस मामले पर उच्चतम न्यायालय की तरफ से अहम टिप्पणी आई है। एक केस पर सुनवाई के समय अदालत का कहना है कि ऐसा कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की प्राइवेट प्रॉपर्टी में किसी संगठन अथवा सरकार का अधिकार नहीं मान सकते है। यह भी खतरे से भरी बात होगी कि सरकार इस संपत्ति को लोक कल्याण के उद्देश्य से अपने अधिकार में नहीं कर सकेगी। अदालत ने स्पष्ट किया है कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन के भाव को लाना है।

निजी संपत्ति पर सरकार के अधिकार का मामला

इस मामले में शीर्ष न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 नजाजो की पीठ ने टिप्पणी दी है। मामले में मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) सहित अन्य याचियों की तरफ से तर्क दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 39B एवं 31C की संविधानिक स्कीम्स की मदद से सरकार के पास प्राइवेट प्रॉपर्टी को कब्जाने का अधिकार नहीं है।

उच्चतम न्यायालय इस केस पर सोच रही है कि क्या प्राइवेट प्रॉपर्टी के मामले में संविधान के आर्टिकल 39B के अंतर्गत वर्ग का भौतिक रिसोर्स ठहरा सकते है अथवा नहीं। पीठ के अनुसार इस प्रकार की राय देना शेखी दिखाने समान रहेगा कि वर्ग के भौतिक रिसोर्स के अर्थ सिर्फ पब्लिक रिसोर्स से है एवं किसी इंसान की प्राइवेट प्रॉपर्टी से नही।

संविधान सामाजिक बदलाव के लिए बना

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इस प्रकार से सोचने के खतरे को भी भी पीठ ने स्पष्ट करते हुए बताया कि हम लोगो के लिए ऐसा कहना कि आर्टिकल 39B के अंतर्गत निजी जंगल में सरकारी पॉलिसी में नहीं होगी। इस प्रकार से इससे दूर रहना चाहिए तो यह काफी खतरनाक बात होगी। अदालत ने आगे भी बताया कि साल 1950 में जिस समय पर संविधान की रचना हुई तो इसका उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन करना था। इस वजह से हम नही कह सकेंगे कि प्राइवेट प्रॉपर्टी को आर्टिकल 39B के अंतर्गत नही ला सकते है।

पूरा मामला जान लें

वैसे ये पूरा प्रकरण महाराष्ट्र सरकार के महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण के कानून से संबंध रखता है जोकि साल 1976 में पारित हुआ था। इसके अन्तर्गत कहा गया है कि सरकार पूर्व समय से पूर्व अधिग्रहित हुई किसी बिल्डिंग अथवा भूमि को अधिग्रहित कर सकेगी। साल 1992 में इसी कानून के विरोध में एक याचिका भी दाखिल हुई है और अब तक ये प्रकरण उच्चतम न्यायालय में चल रहा है।

इसी कानून पर बात करते हुए उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी दी है कि जर्जर हो चुकी बिल्डिंग को अपने अधिकृत करने का अधिकार दें रहा ये महाराष्ट्र सरकार का कानून मान्य है अथवा नहीं, वे पूर्णतया भिन्न मामला है। इस मामले पर कोर्ट अलग ही निर्णय देने वाला है। फिर कोर्ट ने प्रश्न किया कि क्या एक बार किसी प्रॉपर्टी के प्राइवेट होने पर आर्टिकल 39B के तहत आएगी अथवा नहीं?

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अनुच्छेद 39B मान्य नहीं होगा कहना गलत

अदालत का कहना है कि समाजवाद की धारणा के मुताबिक किसी भी प्रॉपर्टी को प्राइवेट नही मानते है। यह धारणा प्रॉपर्टी पर सभी के अधिकार को मान्यता देती है। किंतु हम लोगो अपनी प्रॉपर्टी को बाद की पीढ़ियों के लिए रखते है। किंतु हम लोग उस प्रॉपर्टी को ज्यादा वर्ग के लिए ट्रस्ट में भी रख देते है जोकि निरंतर विकास की पूर्ण धारणा है। पीठ का कहना है कि संविधान में आर्टिकल 30B को जोड़ने के पीछे उद्देश्य समाज में परिवर्तन लाना था।

इस वजह से हमको इतनी आगे नहीं चला जाना होगा कि किसी प्रॉपर्टी के प्राइवेट होने पर उसके ऊपर आर्टिकल 39B में नहीं हो सकेगा। यह आर्टिकल सरकार को लेकर यह तय करने की पॉलिसी बनाने की जरूरत पैदा करता है कि वर्ग के भौतिक रिसोर्स की मलकियत एवं कंट्रोल ऐसे करना होगा कि सामान्य नागरिकों का अच्छा हो सके।

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