Air Pollution Is Making Children Weak: एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि बच्चो को No2 के कांटेक्ट में कितने टाइम तक आने से उनकी हेल्थ पर किया खराब प्रभाव पड़ने वाला है। यह सर्वे स्पेन के 4 इलाको में 1,703 महिला एवं उनके बच्चो पर हुआ है। इसमें पता चला है कि वायु प्रदूषण इन बच्चो के दिमाग में कितना बुरा असर डालता है और वे दिमागी रूप से कमजोर होते है। इसे उनकी दिमागी क्षमता पर खराब प्रभाव पड़ता है और उनकी एकाग्रता में कमी होने लगती है।
No2 वायु प्रदूषण का अहम घटक है जोकि गाड़ियो जैसे कार, ट्रक से निकलने वाले प्रदूषण से निकलता है। इस सर्वे को बार्सिलोना इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ से संबंधित शोधार्थियों ने 2 सालो तक किया है। इसके बाद सर्वे के परिणाम जर्नल एनवार्यरमेंट इंटरनेशनल में पब्लिश भी हुए है।
समस्या के विज्ञान को जाने
सर्वे को लेकर प्रेस नोटिस में शोधार्थी एनी क्लियर बिंतर का बयाना है कि परिणाम बताते है कि परिवहन से जुड़े प्रदूषण के बढ़ने से बच्चो में एकाग्र होने की शक्ति के विकसित होने की दर में कमी आने लगी है। इस बात में कोई शंका नहीं है कि दिमाग के सभी अहम कार्यकारी कामों में कंट्रोल करने को लेकर एकाग्रता काफी जरूरी है। इन सही अहम कामों में कोई खास उद्देश्य पाने में कामों, विचारो एवं भावो को दर्शाना एवं कंट्रोल सम्मिलित है।
शोधार्थी बताती है कि प्रीफ्रंटल कॉन्टेस्क इन सभी कामों को करने वाला दिमाग का अहम भाग है जोकि काफी धीमी गति से विकसित होता है और ये गर्भ के शुरू के दौर में भी मेच्योर होने लगता है। यह इस हिस्से को वायु प्रदूषण के मामले में भी काफी सेंसेटिव करता है किंतु इससे सुजना ईवा एनर्जी के इस्तेमाल में दिक्कत आदि की समस्या हो जाती है। चूंकि लडको के दिमाग काफी धीरे से मैच्योर होते है तो इनको इसको लेकर काफी अनसेफ कर देती है।
भारत के सौ फीसदी लोग प्रभावित
ग्लोबल लेवल पर भी वायु प्रदूषण का मुद्दा काफी घातक हो चुका है और इस बात की स्वीकृति WHO (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) के रिकॉर्ड भी कर देते है। इस समय पर विश्व की 99% जनसंख्या इस प्रकार की वायु में सांस ले रही है जोकि WHO द्वारा तय वायु प्रदूषण के मानकों से काफी अधिक है। भारत जैसे देश में तो ये बात और भी घातक हो चली है। इस समय पर भारत का हर नागरिक ऐसी हवा में सांसे लेने को विवश है जोकि हेल्थ के मामले में बिल्कुल भी सेफ नहीं है। ये दिमाग के साथ शरीर पर भी बुरा प्रभाव डाल रही है।
ये पॉल्यूशन हमारे जीवन की क्वालिटी पर भी प्रभाव डालने लगा है। रिपोर्ट्स को देखे तो इस समय भारत के 67% से ज्यादा लोग इस प्रकार की हवा में सांसे लेने को विवश है जोकि पॉल्यूशन के लिहाज से खुद भारत के ही सरकारी वायु गुणवत्ता मानक से अधिक है जोकि 40 माइक्रोग्राम/ घन मीटर तय किया गया है।
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जल्द ही प्रभावी समाधान की जरूरत
इस तरह से ये सर्वे चाहे स्पेन के बच्चो के लिए हा हो किंतु इससे आए परिणाम दिखाते है कि वायु प्रदूषण भारतीय बच्चो की दिमागी हेल्थ पर काफी ज्यादा प्रभाव डालने में लगे है जोकि उनको किसी न किसी तरह से दिमागी तौर पर कमजोर करने वाला है। इस तरह से भारत में बढ़न वाले इस प्रदूषण के मामले को शीघ्र ही समाधान देना फिजिकल एवं मेंटल हेल्थ के लिए काफी अहम है।