बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि दहेज लेने के बाद भी बेटी पिता की संपत्ति में दावा कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि दहेज और पिता की संपत्ति में कोई संबंध नहीं है। दहेज एक सामाजिक बुराई है, लेकिन यह कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है। लेकिन हाल ही में सम्पति से जुड़ा एक बहुत बड़ा विवाद हुआ। यह विवाद चार बहनों और चार भाइयों के 10 लोगों के परिवार में हुआ। जहाँ प्रॉपटी को लेकर यह मामला सामने आया इसके तहत बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। तो चलिए जानते हैं यह सम्पूर्ण खबर क्या है।
पूरा मामला जानिए
इस मामले में, एक परिवार में चार बहनें और चार भाई थे। पिता की मृत्यु के बाद, बड़ी बेटी ने याचिका दायर करके एक डीड का हवाला दिया था। इस डीड में बेटी के दिवंगत पिता ने बेटी को संपत्ति का उत्तराधिकार पहले ही बना दिया था।
इस प्रार्थना में 8 सितंबर, 1990 की एक दूसरी डीड का भी जिक्र किया गया था। इसमें मां द्वारा परिवार की एक दुकान को भाइयों के नाम स्थानांतरण कर दिया गया था। लेकिन याचिका में इस डीड को अस्वीकृत करने का अनुरोध किया गया था। यह अनुरोध किया गया कि उसकी इच्छा के बिना भाइयों के नाम कोई दुकान ट्रांसफर ना की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने बेटी के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पिता की मृत्यु के बाद, बेटी को संपत्ति का समान अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मां को बेटी की सहमति के बिना संपत्ति को भाइयों को ट्रांसफर करने का अधिकार नहीं था।
कोर्ट में भाइयों को दी दलील
याचिकाकर्ता के भाइयों ने कहा की शादी के दौरान चारों बहनों को दहेज़ दिया गया था। तथा अब इन चारों बहनों को ना तो परिवार की प्रॉपर्टी का एक भी हिस्सा दिया जाएगा और ना ही दुकान, अर्थात अब इनका परिवार की किसी भी सम्पति में अधिकार नहीं है। इस विवाद की पहले कार्यवाई ट्रायल कोर्ट में की गई फिर इसे मामले को हाईकोर्ट तक पहुंचाया गया।
ट्रायल कोर्ट में क्या हुआ
31 मई, 2003 को lower court द्वारा फैसले में बेटी के क्लेम को अस्वीकृत कर दिया गया था तथा पिता के प्रॉपर्टी का हकदार बेटों को बनाए रखा।
हाईकोर्ट में अपने फैसले में क्या कहा
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को डीड ट्रांसफर के चार साल बाद भी मुकदमा दायर करने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि उसे डीड ट्रांसफर होने की जानकारी मुकदमा दायर करने के 6 हफ्ते पहले ही हुई थी।
परिसीमा अधिनियम, 1963 एक भारतीय कानून है जो यह निर्धारित करता है कि किसी भी कानूनी दावे को कितने समय के भीतर दायर किया जाना चाहिए। इस अधिनियम के तहत, किसी भी संपत्ति के ट्रांसफर को रद्द करने की अवधि तीन साल है।
हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता को राहत दी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को डीड ट्रांसफर होने की जानकारी मुकदमा दायर करने के 6 हफ्ते पहले ही हुई थी। ऐसे में उसे मुकदमा दायर करने के लिए तीन साल का समय दिया जाना चाहिए।
अदालत ने भाइयों की द्वारा जो सबूत पेश किए गए थे वे सबूत इस बात को साबित करने में असमर्थ हैं। कि बहनों को इन सब के बारे में पहले से बात पता थी। हाईकोर्ट ने मामले में 1961 में ‘केएस नानजी एंड कंपनी बनाम जटाशंकर दोसा’ मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रसंग किया।
कोर्ट ने इस मामले में पुर्तगाली नागरिक संहिता के आर्टिकल 1565 और 2177 का उल्लंघन हुआ है. कोर्ट ने फैसला बेटी के पक्ष में सुनाया.
अतः बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि शादी के समय दहेज दिए जाने पर भी बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार है. कोर्ट ने इस फैसले में कहा है कि बेटियों को बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं, चाहे उन्हें शादी के समय दहेज दिया गया हो या नहीं.
इन प्रावधानों का अर्थ समझिए
इस मामले में, एक पिता ने अपनी संपत्ति को अपने बेटे को बेच दिया, जबकि उनके दो बेटियां भी संपत्ति की हिस्सेदार थीं। बेटियों ने पिता के खिलाफ मुकदमा दायर किया और कहा कि पिता ने उनकी सहमति के बिना संपत्ति बेच दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 1565 के अनुसार, माता-पिता या दादा-दादी को संपत्ति बेचने से पहले सभी बच्चों की सहमति लेनी चाहिए। यदि कोई बच्चा सहमति नहीं देता है, तो संपत्ति नहीं बेची जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सभी बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हों। यदि माता-पिता या दादा-दादी एक बच्चे की सहमति के बिना संपत्ति बेच देते हैं, तो यह दूसरे बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन है।
गोवा नागरिक संहिता के अनुच्छेद 2177 के अनुसार, एक संयुक्त संपत्ति के मालिकों को एक-दूसरे की सहमति के बिना कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में इस प्रावधान को लागू किया है।
क्या पिता की प्रॉपर्टी के मालिक सिर्फ बेटे ही हैं?
आमतौर पर हमारे समाज में बेटे को ही पिता का उत्तराधिकारी माना जाता है। संशोधित अधिनियम के अनुसार, बेटियां और बेटे दोनों पिता की संपत्ति में समान अधिकार रखते हैं, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं। बेटियों को उत्तराधिकार से वंचित करने के लिए, पिता को एक वसीयत बनानी होगी। वसीयत में, पिता अपनी संपत्ति का वितरण कैसे करना चाहता है, यह निर्धारित कर सकता है। हालांकि, वसीयत को कानून के अनुसार लिखना और हस्ताक्षरित करना होगा।
यदि कोई पिता अपनी संपत्ति को अपनी बेटियों से दूर रखना चाहता है, तो उसे एक वसीयत बनानी होगी। वसीयत में, पिता अपनी संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को दे सकता है।
क्या शादीशुदा बेटी पिता की संपत्ति की हकदार होती है?
जी हां, बेटी शादी के बाद भी पिता की संपत्ति की हकदार होती है। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद, बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त हुए। इससे पहले, बेटियों को केवल पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार का अधिकार था, लेकिन स्वअर्जित संपत्ति में नहीं।
बेटियों को कब नहीं मिलता है उत्तराधिकार
भारत में, बेटियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार हैं, भले ही वे शादीशुदा हों या नहीं। हालांकि, कुछ मामलों में, बेटियों को उत्तराधिकार से वंचित किया जा सकता है। ये मामले निम्नलिखित हैं:
- यदि बेटी ने अपनी पिता की संपत्ति को त्याग दिया है। बेटी अपनी पिता की संपत्ति को त्याग सकती है, यानी वह अपनी पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं रखती है। ऐसा करने के लिए, उसे एक लिखित दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने होंगे।
- यदि बेटी ने अपने पिता के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। यदि बेटी अपने पिता के खिलाफ मुकदमा दायर करती है, तो उसके पिता की संपत्ति पर उसके अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- यदि बेटी ने अपने पिता के खिलाफ अपराध किया है। यदि बेटी अपने पिता के खिलाफ अपराध करती है, तो उसके पिता की संपत्ति पर उसके अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जब पिता अपनी संपत्ति बेटों को वसीयत कर दे
पिता अपनी संपत्ति बेटों को वसीयत कर देना एक सामान्य प्रथा है। यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि संपत्ति उनके वांछित उत्तराधिकारियों को मिल जाए। वसीयत बनाने के कई फायदे हैं, जिनमें शामिल हैं:
- यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति आपके इच्छित लोगों को मिले, भले ही वे आपके मृत्यु के समय जीवित न हों।
- यह विवादों को कम करने में मदद कर सकता है।
- यह कर बचत में मदद कर सकता है।
दहेज के आधार पर बेटियों के अधिकारों को कम नहीं किया जा सकता
कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि शादी के समय दहेज दिए जाने पर बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं होना चाहिए। उनका तर्क है कि दहेज बेटियों को भविष्य के लिए आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है, इसलिए उन्हें पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी की आवश्यकता नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि दहेज एक सामाजिक बुराई है और इसे बेटियों के अधिकारों को कम करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा है कि बेटियों को शादी के बाद भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने का अधिकार है। इसलिए, उन्हें पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार होना चाहिए।
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