प्रेग्‍नेंसी में रोने वाली औरतों के बच्‍चों का दिमाग होता है कमजोर, खुद डॉक्‍टर ने दी चेतावनी

जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उससे हर कोई खुश रहने की सलाह देता है। यहां तक कि डॉक्‍टर तक प्रेगनेंट औरतों से स्‍ट्रेस से दूर रहने और खुश रहने की सलाह देते हैं। हालांकि, कुछ महिलाओं को किसी कारण से अपनी प्रेग्‍नेंसी के दौरान तनाव से गुजरना पड़ता…

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Reported by Atul Kumar

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जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उससे हर कोई खुश रहने की सलाह देता है। यहां तक कि डॉक्‍टर तक प्रेगनेंट औरतों से स्‍ट्रेस से दूर रहने और खुश रहने की सलाह देते हैं। हालांकि, कुछ महिलाओं को किसी कारण से अपनी प्रेग्‍नेंसी के दौरान तनाव से गुजरना पड़ता है। कुछ औरतें तो अपनी प्रेग्‍नेंसी में रोती हैं या उदास रहती हैं या अवसाद तक में रहती हैं।

बच्‍चे पर पड़ता है असर

डॉक्‍टर आशा ने कहा कि आप प्रेग्‍नेंसी में जैसा महसूस करती हैं, आपका बच्‍चा भी ठीक वैसा ही महसूस करता है। आप उदास रहेंगी, तो उसे उदासी महसूस होगी। आपके अंदर आत्‍मविश्‍वास कम होगा, तो आपका बच्‍चा भी वैसा ही पैदा होगा इसलिए प्रेग्‍नेंसी में महिलाओं को दुखी या उदास रहने से बचना चाहिए।

मेंटली स्‍ट्रॉन्‍ग बच्‍चा चाहिए तो?

डॉक्‍टर आशा का कहना है कि अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्‍चा मानसिक रूप से मजबूत बने और कॉन्फिडेंट बने, तो आप खुद प्रेग्‍नेंसी में दुखी या परेशान न रहें। यदि आप चाहती हैं कि आपके बच्‍चे की सकारात्‍मक सोच हो और वो खुश रहे, तो आपको भी अपनी गर्भावस्‍था के नौ महीनों में खुश रहना और सकारात्‍मक सोच रखनी होगी।

बच्‍चा भी रोता है

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NCBI की एक रिसर्च में पता चला है कि जो महिलाएं प्रेग्‍नेंसी के दौरान तनाव और भावनात्‍मक रूप से परेशान रहने से बच्‍चे के भी बहुत ज्‍यादा रोने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। जहां पर प्रेगनेंट महिला को एंग्‍जायटी रहती है या पैरेंट्स को तनाव रहता है, वहां पर होने वाले बच्‍चे के भी बहुत रोने या उदास रहने का खतरा होता है।

गर्भ में ही पड़ता है बच्‍चे पर असर

एसोसिएशन फॉर साइकोलॉजिकल साइंस द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि मां की भावनाएं छह महीने या उससे अधिक उम्र के भ्रूण पर भी प्रभाव डाल सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान आप कैसा महसूस करती हैं, यह आपके बच्चे के बड़े होने पर उसके दृष्टिकोण और जीवन के प्रति दृष्टिकोण को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

हार्मोंस हो सकते हैं जिम्‍मेदार

शरीर में तीन हार्मोन-एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) उत्पन्न होते हैं। इन हार्मोनों के स्तर में परिवर्तन मस्तिष्क को विभिन्न संकेत भेज सकता है जो गर्भवती महिला के मूड पर प्रभाव डाल सकता है। ये गर्भावस्था में भावनात्‍म उतार-चढ़ाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता ह। विशेष रूप से गर्भावस्था के आखिरी दो महीनों के दौरान प्रोजेस्टेरोन का स्तर उच्च स्तर पर होता है, जिससे महिला काफी असुरक्षित हो जाती है।

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